नवाबों के शहर का मिज़ाज़ बदल रहा है। इस बार ना तीतर लड़ रहा है ना बटेर। नफरत की प्रतीक लड़ाई मोहब्बत के शहर को पंसद नहीं। बिना लड़े मोहब्बत जीतती दिख रही है।आध्यात्मिक ताकत और सूफिज्म की रंगत नवाबी शहर के चेहरे पर झलक रही है।
ज़ेहन मे अली और जिगर में बजरंगबली वाला ये शहर अलहदा हो भी क्यों ना ! शहर को तहज़ीब- तमद्दुल, नज़ाकत-नफासत, मोहब्बत, भाईचार और मज़हबी सौहार्द की नेमतें देने वाले हज़रत अली के आशिक़ नवाबीन ने बजरंगबली से भी बेपनाह मोहब्बत की है। शहर-ए-लखनऊ में मुस्लिम नवाबीन ने हिन्दुओं की अक़ीदत का सम्मान कुछ इस तरह किया जिसे देखकर आलमे इंसानी को फख्र हुआ। दुनिया ने माना कि नवाबों के शहर ने जिन्ना के इस कथन को झूठा साबित कर दिया जिसमे उन्होंने कहा था कि हिन्दू और मुसलमान सिर्फ दो मजहब ही नहीं बल्कि दो अलग अलग मुल्क हैं।
बजरगबली पर आस्था व्यक्त करने के साथ भूखे की भूख और प्यासों की प्यास मिटाने वाले बड़ा मंगल की रवायत (परंपरा) लखनऊ के नवाबों ने ही शुरु की थी।
इन तमाम खूबियों से सजी नवाबों की विरासत आज भी ज़िन्दा है। रिआसतें चलाने वाले नवाबीन वैसे तो सियासत में पड़ते नहीं लेकिन लोकतंत्र के सम्मान में ये बहुत सोचसमझ कर अपना नुमांइदा चुनते हैं।
लखनऊ के नवाबों के जिक्र में लखनऊ लोकसभा की बात की जाये तो यहां भी अरसा पहले नवाबीन ने एक परंपरा रची थी। नब्बे के बाद के दौर में जब अयोध्या फसाद की आग से सूबे की राजधानी भी खूब सुलग रही थी और भाजपा को लेकर मुस्लिम समाज में नफरत पनप रही थी तब नवाबीन ने लखनऊ लोकसभा सीट के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी की हिमायत का एलान भी किया और अपील भी की। खबर बनी की अटल ने शिया मुसलमानों का भी दिल जीत लिया। यही से अटल जी की शख्सियत पर नवाबों के लखनवी वंशज़ों ने उदारवाद की मोहर लगा दी। इसके बाद लगातार शिया मुसलमान लखनऊ के हर भाजपा उम्मीदवार को भी जिताते में अपना पूरा योगदान देते रहे।
राजनाथ सिंह को अटल की विरासत का हक़दार मानकर पिछले लोकसभा में नवाबीन और कुछ एहले शिया राजनाथ के समर्थन में खुल कर उतरे।
लेकिन इस बार समीकरण बदलते नज़र आ रहे हैं। अली और बजरंग बली दोनों पर अक़ीदा रखने वाली रॉयल फैमली ऑफ अवध के रूख में बदलाव दिख रहा है। अली बजरंगबली का विवादित बयान आने के बाद अज़ादारी और बड़ा मंगल मिलजुल कर मनाने वाले रिबरल शिया भाजपा से नाखुश हैं। इसका सीधा असर लखनऊ लोकसभा सीट के भाजपा उम्मीदवार पर पड़ेगा। शायद इसलिए नवाबीन को आध्यात्मिक ताकत और सूफिज्म की खुश्बू खीच रही है। बजरंगबली पर श्रद्धा और हज़रत अली पर अक़ीदा रखने वाले लखनऊ से कांग्रेस उम्मीदवार आचार्य प्रमोद कृष्णम की तरफ खिचता रूझान बदलाव के संकेत दे रहा है।
रॉयल फैमली ऑफ अवध के महासचिव शिकोह आज़ाद और तमाम नवाबों के वंशजों के साथ आज आचार्य प्रमोद कृष्णम की बैठक भी है। देखते हैं नवाबीन क्या एलान करते हैं !