कौन जीता.. कौन हारा.. किसको कुर्सी मिली.. किसकी जमीन खिसकी.. किस पार्टी की पराजय हुई और किसकी विजय !
यहां इन बातों से कोई मतलब नहीं। मतलब इस बात का है कि देशवासियों ने देश को बहुमत की ताकतवर सरकार दी है। इसलिए आज बधाइयों का दिन है। खुश होने की बेला है। लोकतंत्र के पर्व के नतीजे प्रचंड बहुमत के हों तो खुशियां पालों की रेखाओं को सेलीब्रेशन के लिए मिटा देती हैं। विपरीत विधारधाराएं भले ही तटस्थ रहेंगी पर लोकतांत्रिक शिष्टाचार विरोधी और समर्थक दोनों को देश की नई सरकार बनने के अवसर पर मिला देता है।
कल के नतीजों के बाद लोकतंत्र प्रसन्न है। क्योंकि बड़े जनादेश की सरकार बनेगी। खंडित जनादेश लोकतंत्र को उदास कर देता है। मजबूर और लंगड़ी-लूली सरकार देश की प्रगति और उन्नति की बाधा होती है। देश जिसे बहुमत की सरकार देते हैं वो किसी भी वादे को ना कर पाने का बहाना नहीं कर सकता।
लोकतांत्रिक तहज़ीब और शिष्टाचार असहमत विरोधियों को भी यही नसीहत देता है कि जो जीता उसे सिकंदर मानें,बधाई दें।बनने वाली नयी सरकार को शुभकामनाएं दीजिए।आप बुजुर्ग हैं तो सरकार चलाने वालों को आर्शीवाद दीजिए। आगामी सरकार की सफलता के लिए प्रार्थना कीजिए। मंगलकामनाएं कीजिए। मुसलमान हैं तो रोजे में दुआ कीजिए कि देश ने जिन लोगों को सरकार चलाने की जिम्मेदारी दी है वो ईमानदारी से अपना फर्ज निभाने में कामयाबी हासिल करें। ताकि हमारा मुल्क तरक्की करे। जाहिर सी बात है जब मुल्क तरक्की करेगा तो हम भी कामयाबी की तरफ बढ़ेंगे। पार्टी का दायरा एक विचारधारा से जुड़े लोगों तक सीमित हो सकता है लेकिन जम्हूरियत के निज़ाम में सरकार देश के हर नागरिक की होती है। सत्तारुढ़ पार्टी की विचारधारा से असहमत लोगों से भी सरकार का सगा रिश्ता होता है। यहीं हिन्दुस्तान की जम्हूरियत की खूबसूरती है।
मैं ये नहीं कह रहा हूं कि सरकार के किसी काबिले एतराज़ फैसले पर सवाल मत उठाइयेगा। जो आपको गलत लगे उसपर असहमति जरूर व्यक्त कीजिएगा। अगर आप चमचे नहीं है। अंधभक्त नहीं हैं।चापलूस नहीं हैं। या पेड वर्कर नहीं हैं तो आपके हाथ में जायज़ अभिव्यक्ति का चाबुक होगा। जो सरकार को सहीं दिशा याद दिलाता रहेगा। जागरूक नागरिक या निष्पक्ष और निडर पत्रकार जो जननायक नरेंद मोदी की लोकतांत्रिक जीत का जश्न मना रहे हैं इन्हीं के कलम मोदी के किसी भी कमजोर फैसले पर आपत्ति जताकर मोदी को ताकत देंगे। एतराज करेंगे। आलोचना करेंगे। सवाल उठायेंगे। और हर समाज विरोधी कदम पर उंगलियां भी उठायेंगे। क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में आलोचना सरकार की बेहतर सेहत की टॉनिक होती है। सरकार के आलोचनात्मक बिंदुओं पर हमेशा कलम चलाने वाले का ये लेख पाला बदलने वाला हरगिज नही है। लोकतंत्र की खूबसूरती और जनाधार के सम्मान पर लिखे गये इस लेख को किसी दूसरे रूप में मत लीजिएगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अंधभक्ति, अंध विरोध या सत्ता की चाटूकारिता खतरनाक है। सरकार के नाकारेपन या गलत फैसले को एतराज लायक़ समझयेगा तो उसका निर्भीकता से खूब विरोध कीजिएगा। झूठ, नफरत और वादाखिलाफ़ी के खिलाफ खूब लड़ियेगा। सहमति, असहमति और सवाल किसी भी सरकार से बड़े होते हैं। इस देश का संविधान और न्याय व्यवस्था किसी ताकतवर से ताकतवर सरकार से ज्यादा ताकतवर है।
एक बात याद रखिय दशकों से जो वर्तमान और अतीत मे हुआ है वही भविष्य मे भी होना है। लोकतंत्र की ताकत ने ही सरकारों के सामने जायज़ सवाल उठाने वालों का कुछ नहीं बिगड़ने दिया। और सरकारों की चाटूकारिता करने वालों को कोई लाभ भी हासिल नहीं हुआ।
- नवेद शिकोह
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